
Saturday, July 25, 2009
जवानों के हाथों पर सजेंगीं फतेहाबाद की राखियां

'आया री सासड़ सामण मास'

लगभग दो दशक पूर्व गांव में चौपालों पर नजर आने वाली चहल पहल अब गायब हो चुकी है। शहरों में यह पर्व मनाया तो जाता है, लेकिन इसका स्वरूप बदल गया है। कुछ क्लब या सामाजिक संगठन तीजोत्सव मनाने के लिए एकत्रित होते है, जो इस पर्व को जिंदा तो रख रहे है पर इसकी मूल भावना से दूर होते जा रहे है। क्लब कल्चर के अलावा घरों व सार्वजनिक स्थानों पर डाले जाने वाले झूले लगभग गायब हो चुके है। कुछ वर्ष पूर्व सावन मास में मनाया जाने वाले इस पर्व के अवसर पर पूरे माह झूले झूलने का सिलसिला चलता था। उस समय टहनी रोकने की परंपरा भी थी। क्योंकि तीज के कुछ दिन पूर्व ही पेड़ों के टहने रोक दिए जाते थे। इसके लिए टहने पर एक कपड़ा बांध दिया जाता था, ताकि उसकी पहचान की जा सके। इस बात का ध्यान रखा जाता था कि टहना मजबूत, ऊंचा और लंबा होना चाहिए, ताकि उस पर लंबे झूले आ सकें। महिलाएं घरों, गली, मोहल्लों में एकत्रित होकर समूहगान गाया करती थी। लेकिन आज के युग में अधिकांश महिलाएं तीज के गीतों को ही भुला चुकी है। सामान्यतया लड़कियां विवाह के बाद अपनी पहली तीज पीहर में मनाती है। बड़ी लड़कियां भी पीहर आने तो तरसती है, ताकि वे अपनी बचपन की सहेलियों से मिल सकें। तीज गांव की लड़कियों का अपने पीहर में मिलन का एक सामूहिक त्यौहार भी है। लेकिन अब ये सब केवल किताबी होते नजर आ रहे है।
कपड़े पर गंदगी लगा 27 हजार उड़ाए
भट्टूकला : हिसार रोड पर दिन दहाड़े एक पूर्व सैनिक से 27 हजार रुपये से भरा बेग अज्ञात व्यक्तियों द्वारा उड़ा लेने का समाचार है। मिली जानकारी के अनुसार रामसरा निवासी पूर्व सैनिक मनफूलसिंह स्थानीय स्टेट बैंक से 27 हजार रुपये निकलवा कर लाया था कि उसके पीछे लगे अज्ञात लोगों ने हिसार रोड पर अचानक उसके पीठ पर गन्दगी लगा दी। इसके बाद उसने आवाज दी कि ताऊ आपके गन्दगी लगी है। जैसे ही मनफूल ने अपने कमीज पर लगी गन्दगी को साफ करना चाहा तो उक्त लोग उसके रुपयों से भरा बेग लेकर चपत हो गए। घटना की सूचना मिलते ही स्थानीय पुलिस ने शहर के चारों ओर नाका बन्दी कर पैसे उड़ाने वालों की छानबीन शुरू कर दी। मनफूल ने बताया कि उसके बेग में उसकी बैंक की दो पास बुक , बच्चों के कपडे़ व 27 हजार रुपये थे। समाचार लिखे जाने तक पुलिस बेग उठाने वालों की तलाश में जुटी थी।
Subscribe to:
Posts (Atom)