Saturday, July 25, 2009

जवानों के हाथों पर सजेंगीं फतेहाबाद की राखियां

फतेहाबाद: स्थानीय भोड़िया खेड़ा कालेज की छात्राओं ने इस बार रक्षा बंधन पर अपने भाईयों के साथ-साथ देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर तैनात जवानों की कलाईयों पर भी राखी बांधने का निर्णय लिया है। कालेज के प्राचार्य सीएलजुस्सु ने छात्राओं को इसके लिए प्रेरित किया। उनके प्रयासों के चलते ही कालेज में अब तक सैनिकों के लिए सैकड़ों की संख्या में राखियां जमा की जा चुकी हैं। छात्राओं में देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात सैनिकों के प्रति स्नेह की भावना देखने को बन रही है। इसी के चलते छात्राओं ने रक्षा बंधन पर अपने भाईयों की कलाई पर राखियां बांधने के साथ-साथ सैनिकों को भी राखियां भेजने की ठानी। कालेज में राखियां जमा करने का यह अभियान राखि के त्यौहार तक जारी रहेगा। कालेज प्राचार्य सीएल जस्सु ने कहा, कि छात्राओं व स्टाफ की भावना को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। कालेज की छात्राओं द्वारा इस अभियान में बढ़-चढ़ कर भाग लेना उनमें देशभक्ति की भावना को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि वे स्वयं एक सैनिक परिवार से संबंध रखते है तथा छात्राओं के मन में सैनिकों के प्रति लगाव देखकर उन्हें खुशी हुई है। कालेज प्रशासन छात्राओं की भावना को ध्यान में रखते हुए सभी राखियां सेना प्रमुख को भेज देगा।

'आया री सासड़ सामण मास'

फतेहाबाद: किसी जमाने में 'आया री सासड़ सामण मास, सीढ़ी घड़ा दे चंदन रूख की, आया तै री बहुअड़ आवण दे, चिरी चिराई म्हारे घर धरी','संग की सुहेली सारी झूलरी री, री सासड़ बाग झूलण का, चाव बाग झूलण हेरी जाण दे, लाल गए परदेश में, हे बहू लोग करेगे तकरार' व 'पींग बंटवा तेरी रेसमी ए, घलवा दूं महल कै बीच बाग झूलण की तै टाल सै' जैसे तीजों के गीत अब कम ही सुनाई देते है। पेड़ों के चारों और सभी टहनियां झूलों से लबालब है और युवतियां झूला झूल रही है। गांव के युवक युवतियों को झूला रहे है और पास खड़ी भीड़ इस तीज के पर्व का आनंद ले रही है। ये दृश्य आधुनिकता की मार में गायब हो गए है और उन्होंने क्लब कल्चर में इस संस्कृति को ढालना शुरू कर दिया है।
लगभग दो दशक पूर्व गांव में चौपालों पर नजर आने वाली चहल पहल अब गायब हो चुकी है। शहरों में यह पर्व मनाया तो जाता है, लेकिन इसका स्वरूप बदल गया है। कुछ क्लब या सामाजिक संगठन तीजोत्सव मनाने के लिए एकत्रित होते है, जो इस पर्व को जिंदा तो रख रहे है पर इसकी मूल भावना से दूर होते जा रहे है। क्लब कल्चर के अलावा घरों व सार्वजनिक स्थानों पर डाले जाने वाले झूले लगभग गायब हो चुके है। कुछ वर्ष पूर्व सावन मास में मनाया जाने वाले इस पर्व के अवसर पर पूरे माह झूले झूलने का सिलसिला चलता था। उस समय टहनी रोकने की परंपरा भी थी। क्योंकि तीज के कुछ दिन पूर्व ही पेड़ों के टहने रोक दिए जाते थे। इसके लिए टहने पर एक कपड़ा बांध दिया जाता था, ताकि उसकी पहचान की जा सके। इस बात का ध्यान रखा जाता था कि टहना मजबूत, ऊंचा और लंबा होना चाहिए, ताकि उस पर लंबे झूले आ सकें। महिलाएं घरों, गली, मोहल्लों में एकत्रित होकर समूहगान गाया करती थी। लेकिन आज के युग में अधिकांश महिलाएं तीज के गीतों को ही भुला चुकी है। सामान्यतया लड़कियां विवाह के बाद अपनी पहली तीज पीहर में मनाती है। बड़ी लड़कियां भी पीहर आने तो तरसती है, ताकि वे अपनी बचपन की सहेलियों से मिल सकें। तीज गांव की लड़कियों का अपने पीहर में मिलन का एक सामूहिक त्यौहार भी है। लेकिन अब ये सब केवल किताबी होते नजर आ रहे है।

कपड़े पर गंदगी लगा 27 हजार उड़ाए

भट्टूकला : हिसार रोड पर दिन दहाड़े एक पूर्व सैनिक से 27 हजार रुपये से भरा बेग अज्ञात व्यक्तियों द्वारा उड़ा लेने का समाचार है। मिली जानकारी के अनुसार रामसरा निवासी पूर्व सैनिक मनफूलसिंह स्थानीय स्टेट बैंक से 27 हजार रुपये निकलवा कर लाया था कि उसके पीछे लगे अज्ञात लोगों ने हिसार रोड पर अचानक उसके पीठ पर गन्दगी लगा दी। इसके बाद उसने आवाज दी कि ताऊ आपके गन्दगी लगी है। जैसे ही मनफूल ने अपने कमीज पर लगी गन्दगी को साफ करना चाहा तो उक्त लोग उसके रुपयों से भरा बेग लेकर चपत हो गए। घटना की सूचना मिलते ही स्थानीय पुलिस ने शहर के चारों ओर नाका बन्दी कर पैसे उड़ाने वालों की छानबीन शुरू कर दी। मनफूल ने बताया कि उसके बेग में उसकी बैंक की दो पास बुक , बच्चों के कपडे़ व 27 हजार रुपये थे। समाचार लिखे जाने तक पुलिस बेग उठाने वालों की तलाश में जुटी थी।