Wednesday, September 17, 2008
धर्म को वयाख्या नही व्यवहारिकता चाहिए : स्वामी दिव्यानंद महाराज
फतेहाबाद,17 सितम्बर,(निस)। धर्म को व्याख्या नहीं व्यवहारिकता चाहिये। मर्यादा में रहने की कला धर्म को व्यवस्था देना है। केवल व्याख्याओं से विवदों के बएने़ की संभावनायें अधिक हो जाती हैं। श्री कृष्णा सेवा समिति फतेहाबाद द्वारा आयोजित शिव पुराण कथा में भगवान गणपति के प्राकाट्य को संयम और मर्यादा का अवतार बताते हुये तपोवन हरिद्वार से पधारे महामण्डलेश्वर डॉ. स्वामी दिव्यानंद जी महाराज ने कहा कि पार्वती जी का �ान करते समय शिव का आना और पार्वती जी का संकुचित होकर शिव को मर्यादा का महत्त्व बताते हुये कहना कि पति पत्नि में जैसी मर्यादा होनी चाहिये और कहीं नहीं। क्यों कि घर में रहने वाला हर बालक अपनी माता-पिता की हर क्रिया को देखता है। ऐसा नहीं कि माता-पिता बच्चों पर नजर रखते हैं। बच्चे भी माता-पिता पर नजर रखते हैं। ऐसा माता-पिता को ध्यान रखना चाहिये। इसीलिये हे भोलेनाथ हमें हमारा निजी गण प्रदान करें जीे पुत्र रूप में सेवा कर सके। इसके बाद पुत्र रूप में जिस गणाध्यक्ष का जन्म हुआ वे हैं भगवान गणेश। भारत जैसे गणतंत्र देश में परमाध्यक्ष के रूप में गणाध्यक्ष गणेश की तरह होना चाहिये। जिन्होंने अन्याय के विरुद्ध नियम बनाने हैं यदि वही अन्याय युक्त होकर कटघरे में खड़े हों तो ऐसे गणतंत्र में न्याय की उम्मीद कहां की जाये। पार्वती जी का मानना है कि शिव को ही रोकना थ अंदर आने के लिये और पहरेदार के रूप में यदि शिव का ही गण हो तो वह शिव को कैसे रोक पायेगा। अन्यथा शिव अंदर कैसे प्रवेश कर गये और क्यों पार्वती जी को संकुचित होना पड़ा। गणपति से अभिप्राय: है ऐसा न्याय जो स्वतंत्र हो। जिस न्याय में किसी प्रकार का दबाव न हो। इसीलिये गणपति का प्रथम गुणेश है। सुमुख है अर्थात गुणी की खान सुंदर मुख वाले। जिनकी कृति सुंदर है, कार्य श्रेष्ठ हैं उनकी आकृति कैसी भी हो वे अत्यंत सुंदर हैं। गणपति की तो आकृति भी मानव को कई प्रकार से ुसंदर प्ररेणा देती है इसीलिये आकृति भी सुंदर है। भारतीय संस्कृति में सुंदरता से अभिप्राय: ब्यूटि पार्लर से खरीदी हुई सुंदरता नहीं अपितु ‘‘सत्यं शिवं सुदंरम्’’ अर्थात सत्य और कल्याण कारी परमात्मा से जुड़ी सुंदरता ही सुंदरता है। शेष तो सब शारीरिक आकर्षण है। ऐसे कल्याणकारी गणपति का दर्शन कर यदि कार्य आरंभ किया जाये तो निश्चित कार्य सफल होगा।
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