Monday, September 15, 2008

बिना वेद विद्या के आत्मशुद्धि नही: स्वामी दिव्यानंद











फतेहाबाद, 15 िसतम्बर : वेद, उपिनषद तथा पुराणा भारतीय संस्कृित के आधार स्तम्भ हैं, ब्रह्मािवद्या के साथ भगवत आराधना तथा मानव के कमोर्ं की शुिद्ध करना इन गुणों का मूल उद्देश्य है क्योिंक कमर् शुिद्ध के िबना समाज को व्यविस्थत करने का प्रश्न ही नही उठता। इसिलए ये ग्रंथ आिदकाल से आज तक अपनी उपयोिगता बनाए हुए हैं। श्री कृष्णा सेवा सिमित फतेहाबाद में प्रांरभ हुए िशवपुराण कथा ज्ञानयज्ञ में तपोवन हिरद्वार से पधारे महामंडलेश्वर डा. स्वामी िदव्यानंद जी महाराज ने कहा िक िबना संस्कार शुिद्ध के व्यवहार कैसे शुद्ध हो सिता है। आज टीवी िसनेमा अथवा अश्लील सािहत्य के द्वारा बच्चों के संस्कार तो िबगाड़े जा रहे हैं और दूिषत व्यवहार के िलए दंड िदया जा रहा है। डंडे के जोर से िकसी के तन को हराया तो जा सकता है िकंतु उसके मन को जीता तो नही जा सकता। प्राचीन ऋिषयों ने सद्ग्रंथों के माध्यम से संस्कार शुिद्ध पर ही बल िदया है। भले ही मोक्ष का मागर् ज्ञान है िकंतु आत्मज्ञान की िसद्धी के िलए पहले कमर्शुिद्ध, िचत्तशुिद्ध और वृित की अंतर्मुखता भी आवश्यक है, यही वेदों का दशर्न है िजसे ित्रकाण्ड के रुप में कमर्, उपासना और ज्ञान कहा है जो िभन्न-िभन्न मागर् नही है अिपतु एक दूसरे के पूरक हैं। उपिनषद और पुराण भले ही इन की शैली अलग-अलग हो िकंतु ये दोनो भी वैिदक िसद्धांतों का ही प्रितपादन करते हैं, पुराण भी उतने ही पुराने हैं िजतने की अन्य मूल्यग्रंथ। भले ही व्यास जी महाराज ने इन्हें पुन: संस्कािरत िकया हो और इसी कारण लोगों ने पुरानों का रचियता भी व्यास जी महाराज को मान िलया हो िकंतु व्यवहािरक शैली में िजतना अच्छा प्रितपादन पुराणों में िकया गया है, जनसाधारण के िलए एक वरदान है। आज कायर्क्रम का शुभारंभ ध्वजारोहण और िशवपुराण पूजन से िकया गया, िजसमें

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